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खेल की तरह / निशान्त
Kavita Kosh से
मेला जुडेगा
सिर्फ एक दिन के लिए
और लगाने के लिए दुकानें
ये इतनी ठंड में भी
दो रात पहले ही
रोक-रूध कर जगह
बैठे हैं
रास्ते के दोनों ओर
थोडे कपडों
और छोटे-छोटे
अलावों के सहारे
लगाएँगे भी क्या दुकानों में?
खिलौने-गुब्बारे
बताशे-नारियल
कंघा-शीशा-नेल पॉलिस
परांदे-चप्पलें
एक जैसे सामान की होगी
ज्यादा दुकानें
इसलिए खींचने के लिए
ग्राहक
लगाएँगे ऊँची-ऊँची आवाजें
खेल की तरह
कहेंगे नहीं कभी
हमारी तरह
हाय! संघर्ष
हाय! संघर्ष।