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खेल रेल का / विद्याभूषण 'विभू'
Kavita Kosh से
आओ खेलें खेल,
छुक छुक रेल!
छन्नू, मन्नू-नन्नू, कन्नू,
इंजन छन्नू, डिब्बा मन्नू।
बैठा नन्नू, गारद कन्नू!
सरपट दौड़ी रेल,
फट फट दौड़ी रेल!
सी-सी सीटी देती रेल,
गट-गट पानी लेती रेल!
भक-भक, धक-धक,
खट-पट, पट-पट!
झटपट जाती रेल,
खट-खट जाती रेल!
कलकत्ता से दिल्ली जाती,
दिल्ली से कलकत्ता आती!
भक-भक, फक-फक,
झक-झक, छक-छक!
ठेलम ठेल,
जाती रेल!
उखड़ी पटरी,
उलटी रेल!
धम-धम, धम-धम
बिगड़ा खेल!
-साभार: ‘बबुआ’, विद्याभूषण ‘विभू’, 1949, 5-6