Last modified on 23 जनवरी 2010, at 06:39

खेल ही खेल में खो रहा हूँ समय / प्रेम नारायण 'पंकिल'

खेल ही खेल में खो रहा हूँ समय, प्रभु तुम्हीं ख्याल करके बुलाया करो
आपका सुत मलिन हो है किसकी हँसी, मेरा श्रृंगार खुद तुम सजाया करो।।

अपने अनुराग का ज्वार उर में उठा,
पुत्र से प्रेम का तार तोड़ो नहीं।
प्रेम की प्यास प्रतिपल बढ़ाते चलो,
नाथ बलहीन हूँ बाँह छोड़ो नहीं।
मेरे हर कोने-कोने से परिचित प्रभु
दीन सुत का न बल आजमाया करो-
आपका सुत मलिन 0.................................।।1।।

तेरे आगे बॅंधा छटपटाता पड़ा
षड़ विकारों की तगड़ी लगी हथकड़ी
सर्प संशय के फन काढ़ फुफुकारते
नाथ अपनी कृपा की सुँघा दे जड़ी।
मेरे उर को बना अपना लीला-सदन
दुर्गुणों का दयामय सफाया करो-
आपका सुत मलिन 0.................................।।2।।

कैसे चुप देखते हो मेरी दुर्दशा
नाथ क्या काम है आप से भी बली।
तुम कृपाधाम अपना तरेरो नयन
कर रहा है डवाँडोल मुझको छली।
अब उठाओं वरद बाँह सच्चे प्रभो
अपने कर-कंज की मुझपे छाया करो।
आपका सुत मलिन 0.................................।।3।।

कितना ऊँचा है नभ कितनी नीची धरा
फिर भी जल-ज्योति से सींचता भू गगन।
नित इसी भाँति अपनी कृपा-दृष्टि से
सिक्त कर दो हमें सच्चे प्रभु प्राणधन।
पलट दो नीच ‘पंकिल’ की प्रभु जिन्दगी
लड़खड़ाते को अँगुली थमाया करो-
आपका सुत मलिन 0.................................।।4।।