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खेल / पंकज सुबीर
Kavita Kosh से
क्षितिज के दोनों किनारों पर
दो पगडंडियाँ हैं
एक पर सीधा चढ़ाव है
दूसरी पर तेज़ ढलान है
जहाँ से चढ़ाव शुरू होता है
वहाँ लिखा है जीवन
और जहाँ से ढलान शुरू होती है
वहाँ लिखा है मृत्यु
मैं चढ़ना शुरू करता हूँ
चढ़ता जाता हूँ
चढ़ता जाता हूँ
कि अचानक जाने कैसे
कहाँ से
आ मिलती है
दूसरी पगडंडी
मैं पलटने की कोशिश करता हूँ
पर पलट नहीं पाता
और ढलान वाली पगडंडी पर
लुढ़कने लगता हूँ
फिर कुछ पता नहीं चलता
कि क्या हो रहा है
जब आँख खुलती है
तो खुद को फिर से
पहले वाली पगडंडी पर
पड़ा पाता हूँ
कोई मेरी नन्हीं उँगलियाँ थामकर
मुझे उठाता है
और कहता है
चलो...
फिर से शुरू करो...