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खेल / शंख घोष / जयश्री पुरवार
Kavita Kosh से
जिन लोगों ने मेरा अपमान किया है
जिन लोगों ने मुझे ग़लत समझा है
यहाँ तक कि जिन्होंने मुझे ग़लत समझाया है
आज वे सभी लोग आकर एक साथ बैठे है गैलरी में
अब वे कौन सा खेल खेलते हैं — यह देखना है ।
पर मैदान के ठीक बीचोंबीच
अचानक मुझे बहुत ज़ोर की नींद आ गई
रेफ़री का सीटी बजाना और
उन लोगों की हो हो आवाज़ों के बीच से होकर
जैसे एक संकरी नदी के ऊपर
हलका होकर तैरता रहा मेरा शरीर ।
यह नदी, एकाकी
देह से अगर सबकुछ खुलकर गिर जाए,
वह सजीवता भी, जो फिर से नई हो उठी थी
इसका कोई अर्थ है ! अपराधी मै ?
हर रोज़ कितने पाप करता हूँ !
मूल बांग्ला से अनुवाद : जयश्री पुरवार