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खोई हुई चीज़ें / आशुतोष दुबे
Kavita Kosh से
खोई हुई चीज़ें जानती हैं
कि हम उन्हें ढूँढ़ रहे हैं
और यह भी
कि अगर वे बहुत दिनों तक न मिलीं
तो मुमकिन है
वे हमारी याद से खो जाएँ
इसलिए कुछ और ढूँढ़ते हुए
वे अचानक हाथ में आ जाती हैं
हमारे जीवन में फिर से दाख़िल होते हुए
हम उन्हें नए सिरे से देखते हैं
जिनके बग़ैर जीना हमने सीख लिया था
जैसे हम एक खोए हुए वक़्त के हाथो
अचानक पकड़े जाते हैं
और ख़ुद को नए सिरे से देखते हैं
जल्दी से आईने के सामने से हट जाते हैं