हम सब चलते-चलते
पहुँच गए वहाँ,
जहाँ हमें नहीं होना था।
हम चाहते थे
जीना अपने मन की,
छोटी-छोटी आशाओं के साथ,
दिल को पसंद आने वाले लोगों और
ख्वाबों के साथ।
चलना चाहते थे उन रास्तों पर,
जो ख़ुद को ख़ुद से दूर न करते।
चुनना चाहते थे ऊँचे पर्वतों से
कुछ फूल,
देखना चाहते थे
दुनिया का एक-एक कोना।
भीगना चाहते थे
बारिश की झिलमिल बूंदों में,
महसूस करना चाहते थे
आकाश की अस्मिता,
प्रकृति की विशालता।
हम चाहते थे,
हमसे कोई न बिछड़े,
हमारा बचपन कभी न खोए।
पुराने खिलौने, किताबें...
सब यहीं रहें हमारे पास।
हम चाहते थे कि
हमारी सफलताएँ, असफलताएँ
और सीमाएँ सिर्फ़ हमारी हों।
जीवन का हर पल
हमारे अपने निर्णयों से तय हो।
पर हम सब अभिशप्त हैं
उसी जगह रहने को,
जहाँ होना,
अपने जैसा होना नहीं है।