खोजता रहा जिसे मैं, वेदों पुराण में / त्रिभवन कौल
खोजता रहा जिसे मैं, वेदों पुराण में
गुरुओं के द्वार पर, गीता कुरान में
मंदिर की घंटियों में, मस्जिद अज़ान में
जा जा के जिसे ढूंडा जीज़स के मकान में
खोजता रहा जिसे मैं, वेदों पुराण में
मिला न तू मुझे पंडित की दुकान में
ऊंचे पर्वतों स्थित तीर्थ स्थान में
फूलों से भी पूछा भौरों की जुबान में
बाज़ार में मिला न, ना ही शमशान में
खोजता रहा जिसे मैं, वेदों पुराण में
झुलसाता रहा मैं ज़िस्म को रेगिस्तान में
शायद मिले तू कहीं किसी नखलिस्तान में
तम्मना थी मेरी बस, तुझसे जा मिलूँ
रात दिन एक किये अंधी तूफ़ान मैं
खोजता रहा जिसे मैं, वेदों पुराण में
झोपड़ियाँ छान मारी, छान मारे बंगले
दर दर भटकता रहा, साधुओं का संग ले
ना मिला मुझे कहीं, ज़मीन आसमान में
जंगल में ना पाया, ना मूर्ति चटान में
खोजता रहा जिसे मैं, वेदों पुराण में
पता लगा मुझे तेरा, जब होश मैं खोने लगा
पास था मेरे हमेशा, ज्ञान यह होने लगा
इंसान का ही रूप धर, इंसानियत में बसा है तू
तू करम, प्यार, सेवा में, आभास यह होने लगा
खोजता रहा जिसे मैं, वेदों पुराण में
करना क्षमा तू जो भी है, पहचान सका न मैं तुझे
मांगता हूँ बस यही कि एक जन्म और दे
खोजता रहा जिसे मैं सारे संसार में
रहा हमेशा मेरे संग आचार में विचार में
खोजता रहा जिसे मैं, वेदों पुराण मेंI