भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खोज / महादेवी वर्मा
Kavita Kosh से
प्रथम प्रणय की सुषमा सा
यह कलियों की चितवन में कौन?
कहता है ’मैंने सीखा उनकी-
आँखो से सस्मित मौन’।
घूँघट पट से झाँक सुनाते
ऊषा के आरक्त कपोल,
’जिसकी चाह तुम्हें है उसने
छिड़की मुझपर लाली घोल’।
कहते हैं नक्षत्र ’पड़ी हम पर
उस माया की झाँईं’;
कह जाते वे मेघ ’हमीं उसकी-
करुणा की परछाईं’।
वे मन्थर सी लोल हिलोर
फैला अपने अंचल छोर
कह जातीं ’उस पार बुलाता-
है हमको तेरा चितचोर’।
यह कैसी छलना निर्मम
कैसा तेरा निष्ठुर व्यापार?
तुम मन में हो छिपे मुझे
भटकाता है सारा संसार!