खोज / रामकृष्ण
कुच-कुच करिआ
अन्हार
घर, दुआर, गली-गुच्ची
खोते-खरिहाने, गावें-जेवारे
धान के पतरा निअन
पसरल हे।
गोहार-गदाल से अलट
निसबद अन्हरिआ में
झिंगुरो निसबदा गेलन।
तिनडरिआ उगे में
केतना बेर बाकी हे -
के कहत? पूछँ केकरा से?
सभे तो नीन ओढ़ले
पथार होएल हथ।
अइसन अन्हरिआ में
का करूँ-अपन टूटल नीन के
जे कुरेच रहल हे
हमर मगज-हरसट्ठे
हमर दीठ/हिरदा के जोस,
कि कइसहूँ/कनहूँ से
एगो दीरी इया दीआ/चम्मुख
इया मसाल बार के
सान्ही-कोना,
दूना-दलान
गली-गुच्ची
खेत-खरिहान
गाँवे-जेवार
गोरैया-डिहबार
बरहमथान से चिड़ाँरी तक
जगा देउँ।
अइसने में
आँख मटमटा के टोइ अइली
अकास-तऽ लौकल
असमान में ढेर दूर पीर
तरेंगन टिमटिमाइत हथ
आउ भुकभुकाइत हे भकजोगनी
गोड़े तर।
तइओ,
काहे तो अनचीन्ह हे
आँख के सोझे पसरल राह।
केकरा से पूछँू-
कि कन्ने-कन्ने भटकल हे
ई राह।
आन्हर चाट से झनझनाएल
गाल सुहरावित
सोझो बात जइसे अझुर जाहे
ओइसही अनमन ओइसही
अझुर जाहे सोंचल समझल रहख
हरख के दरद।
तास के पन्ना निअन
फड़फड़ा के रह जाहे-
जोस के सरेक मोह।
तइओ,
तइओ जे बोले
अइसन में, हम्मर बात
तोर बात आउ सब के बात
जेमे झरे फूल/चान-सुरुज
अकास-पताल के सिनेह,
हम खोजित ही -
एगो गीता
एगो कुरान
एगो बाइबिल
एगो पोथी
एगो मन्तर
एगो सबद
एगो आयत