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खोज / सुधा ओम ढींगरा
Kavita Kosh से
गिरा नज़र से जो
फिर उसका कहाँ ठिकाना है;
बोझ गुनाहों का स्वयं ही उठाना है.
डार से बिछुड़ कर
पूछे कोई उड़ने वाले से;
कहाँ मज़िल उसकी, कहाँ उसे जाना है.
क्या जानें रहने वाले
सुख औ' मदहोशी के जनूं में;
वीरान बस्तियों को कैसे सजाना है.
किस लिए फैला
वहशत और गरूर का धुआं;
खाली करना है मकां जो बेगाना है.
तनातनी ने
मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारे में;
दिल कई बनाए नफ़रत का कारखाना है.
खोजे सुधा
अब किस जगह ईश्वर को;
इंसानियत हुई क़त्ल जहाँ उसे बैठाना है.