भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खोदो पहाड़ / निकिता नैथानी
Kavita Kosh से
खोदो पहाड़
और मिटा दो सबकी हस्ती
जँगल मानव सबकी बस्ती
खोदो पहाड़
बान्ध बना कर रोक दो नदियाँ
और बहा दो ख़ून की धारा
तोड़ के पत्थर शिखर उजाड़ो
पर्वत रेगिस्तान बना दो
खोदो पहाड़
गाँव छोड़ दो शहर बसाओ
जल-जंगल के दाम बताओ
मुँह खोल कर खड़े हैं मालिक
कब निगले कब निगल-पचाएँ
शहर गया मज़दूर मरा और
गाँव रहा मज़दूर मरा
खोदो पहाड़
वो नहीं तुम सच्चे मालिक
लौट के आओ और जुट जाओ
सब मिलकर के पहाड़ बचाओ
और मिटा दो उनकी हस्ती
जो थे चले मिटाने
आपके और हमारे जंगल-बस्ती
खोदो पहाड़ ।