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खोमचा वाला / मुकुटधर पांडेय
Kavita Kosh से
खड़ी आज खोई-खोई सी
कैसे ठेला गाड़ी?
मौन प्रतीक्षा में है तू किसकी
आँखे किए अगाड़ी?
असमयमें हैकहाँ घूमने
गया खोमचा वाला
अब तक ढोने तुझे न आया
लिए बालटी प्याला
दही बड़े आलू की टिकिया
फूल की थाल सजाता
चने चटपटे चाट चकाचक
की आवाज लगाता
बन्द कोठरी लगा हुआ है
दरवाजे पर ताला
सौदा सुल्फा कर लौटा क्या
नहीं खोमचावाला?
देख रही तू राह किसी की
देती शकल गवाही
काश! लौट, मिल पाता तुझसे
वह चिर-पथ का राही!