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खोरना / भाग 1 / भुवनेश्वर सिंह भुवन

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चगबाहा विद्यालय भेलै,
नव भिस्ती के सिक्का।
महिषासुर के उन्नत ललाट पेॅ,
अच्छत चन्दन टिक्का॥

आंगन रहतै महिष
बंगल में दाना-पानी।
गदह-लीद पेॅ प्रवचन देतै,
अभिनव ज्ञानी॥

जेकरोॅ हैतै चलती,
ओकढ़ै चढ़तै पतर फूल।
हो पन्ना बैसाखनन्दन के,
खोलोॅ तोंय इसकूल।

राम-राम सुग्गा रटै,
राधेश्याम नै टेरै।
कत्तो सिखबै, कत्तो पढ़बै,
आपनोॅ जिद न छौड़ै॥

गांव-घरोॅ में ओझा सरतोॅ,
शहर बचावै वैद।
सबके मन्तर उनटा चलै,
कोय नै जानै भेद॥

रंग-बिरंगा मन्तरिया सें,
नहियें भागलै भूत।
अन्तिम क्षण में बाबू भाखलै,
ई सुग्गा अवधूत॥

तोहरा रोकनें नै रुकतै,
कहियो सूरज के चाल।
नै रुकतै चन्दा के हँसबोॅ,
नै तारा के जाल।

नै गुलाब के गन्ध बदलतै,
नै पूजा के थाल।
पंडित सब दिन अमृत बांचै,
मूर्ख बजावै गाल॥

नै जरलोॅ छै नै मरलोॅ छै,
नै डरलोॅ छै प्राण।
धोखा में नै रहिहोॅ बाबू,
जागलोॅ छै तूफान॥

जात-पांत आन्ही-झक्खर में,
उजड़ेॅ लागलै गांव।
कलपै जरलोॅ पा्रण बिलोला,
कहौं नै पाबै छांब॥

हरिजन के कुटिया लेसी केॅ,
बाबू करै इजोर।
एक्को कली नै फूलेॅ देतै,
जब तक छै सहजोर॥

जब तक रहतै राज कंश के,
धरती रहतै बांझ।
आकाशें आगिन बरसाबै,
हैतै कखनी सांझ॥

एक बरस में छोड़ल्हो बाबू,
जाती के तूफान।
बीस साल जों शासन करभो,
हैतै बाग बिरान॥

जैतै देश रसातल जैतै,
तोहरा की परबाय।
तोरा खातिर रजधानी में,
महल बनाबै भाय॥

इंसाफोॅ के फुलबारी के,
न्याय-धरम रखबारोॅ।
लिप्सा-लोभ समुद्र असीमित,
तइयो पानी खारोॅ॥

जात-धरम के उक्का लेॅकेॅ,
नेता चौदिस नाचै।
त्याग-तपस्या, सेवा-विद्या,
जात कसौटी जाँचै॥

पक्ष-कसौटी जांचै भैया,
के कतना विश्वासी।
के हत्यारा छुट्टा घुमतै,
साधू पड़तै फांसी॥

छल बेची केॅ बनै मिनिस्टर,
लम्पट राते रात।
जय जननायक भाग्य विधायक,
जय भारत के जात॥

जन जागृति के जगमग दीपक,
चकमक-चकमक लाली।
हमरा घर में घोर अन्हरिया,
हिरदय एकदम खाली॥

हिरदय एकदम खाली बाबू,
एकरा कोय नै बुझतै।
जेकरोॅ माथोॅ सीढ़ी बनलै,
ओकरोॅ दुख के गुनतै॥

सच कहला पेॅ ऐ दुनिया में,
दै छै घरपट गाली॥
भीतर भैया माल बटोरै,
बाहर भैंस-जुगाली॥

नोचै हरखन प्राण लोक के,
शासक गिद्ध सियार।
भूख-गरीबी नांगटोॅ नाचै,
दुखिया देश बिहार॥

राज निकम्भा बचबै खातिर,
मंत्री के भरमार।
कोढ़ में खौजली तुष्टिकरण लेॅ,
अध्यक्षी उपहार॥

मरदा पर तोंय जत्ते लादोॅ,
श्रम जैथौं बेकार।
तोहढ़ै रंग लोगोॅ पर बाबू,
छै भविष्य के मार॥

तोहरोॅ वोटर खेत-मजूरा,
भुखलोॅ-नांगटोॅ कानै।
तोंय उड़ै छोॅ वायुयान पेॅ,
ओकरोॅ दुःख के जानै॥

नेमी के सिट्ठी सन घरनी,
सड़िया में सोॅ पेन।
खोहिया सन बुतरू के तड़पन।
कहौं नै पाबै चैन॥

एखन्हू मालिकें गारी दै छै,
आरू दै छै मार।
हाकिम एक्को हुकुम नै मानै,
ई कैहनों सरकार॥

पुरैनियां डक बांगला बनतै,
मधेपुरा रजधानी।
चारागाह सहरसा बनतै,
सुपौल भरतै पानी॥

आँख उठाय केॅ तोरा देखेॅ,
केकरोॅ भला मजाल।
सीधा भेॅ केॅ चलै बाला,
कहां माय के लाल॥

छाती तानी केॅ जे चलतै।
ओकरा लागतै गोली।
जब तक रहतै राज जात के,
मचतै खून के होली॥

तोहरोॅ पाप पहाड़,
झूठ के चादर सें नै झांपोॅड।
भारत देश विशाल,
भैंस के चालोॅ सें नै नापोॅ॥

सांच सर्वदा सर पर नाचै,
झुठा-लुच्चा-भांडोॅ
सगरे स्वाद रहै छै मिट्ठोॅ
प्रीत, खीर आरो खांडोॅ के॥

जब गीदड़ के मौत सन्निकट,
चलै शहर के ओर।
जेकरा हरदम खांसी आबै,
मरलेछेॅ ऊ चोर॥

सुलगै सगर बिहार में,
जात-पांत के आग।
तोहें नाची-नाची गाबोॅ,
गर्धव-भैरव राग॥

बदली आरो पदोन्नति मंे,
मंत्री पूछै जात।
द्वार खुला जाती लेॅ तोहरोॅ,
दिन हुवेॅ कि रात॥

दुखिया घूमै होय बिलोला,
कोय नै पूछै हाल।
अजगर केॅ फांसै लेॅ मछुवां,
बुनै मोलायम जाल॥

ओॅन पच नै बिना झूठ के,
की करल्हो करतार।
कै कारनें देल्हो बिहार केॅ,
झूठा के सरदार॥

भिन्नी बोलै झूठ एक टा,
दिन भर कहै पचास।
के ज्ञानी आभू राखनें छै,
ऐहना पर बिसवास॥

तोरा झूठ के कारण तोरा
दल में उठै विवाद।
तुरते जेकरोॅ पांव पखारोॅ,
तुरत करोॅ बेरबाद॥

बिना घूस के कोनो चिट्ठी,
अलमारी नै छोड़ै।
जहाँ घूस के डोर रेशमी,
बैमानोॅ केॅ जोड़ै॥

घूस-नीत के पावन-सुन्दर
पथ पर मंत्री दौड़ै।
हाकिम भिड़लोॅ महाभोज में,
मुर्ग-मोसल्लम तोड़ै॥

जहां बहै मदिरा के गंगा,
जाम-सुराही फोड़ै।
शोषित-पीड़ित के छाती,
जालिम त्रिशूल सें कोड़ै॥

प्राण प्रकंपित आतंकित,
जन मानस के हाहाकार।
उत्पीड़ित मानव के निस दिन,
आर्तनाद चित्कार॥

मंत्री के सज्जित वाहन पेॅ,
शोभै दस्यु-सरदार।
राहू-गरसित चान्द जनां,
छोटै छै सगर अन्हार॥

पुलिस के बदली-प्रोन्नति के,
जकरा मिललोॅ छै अधिकार।
हुनका कहला पेॅ नाचै,
ताता-थैया थानेदार॥

नेतां खोजै दिया जराय केॅ,
पशु-प्रेमी अधिकारी।
जना किसानें हाट-हाट में,
खोजै बाछी कारी॥

दोसरा केॅ मूरख कहै
आपना केॅ होशियार।
आपनों पीठ ईंट सें ठोकै
बाबू के सरकार॥

आन्हर हाकिम गहूम पीसै,
सबटा बकरीं खाय,
जे कोय बोलै सांच बात,
ऊ तुरत रसातल जाय॥

ककरा चौसठ दांत जनमले,
करेॅ तोरा सें रार।
कत्तेॅ तित्तोॅ सबक सिखैल्हो,
जें कैलखौं तकरार॥

तोहरा सें अध्यक्ष परेशां,
दर-दर ठोकर खाय।
तोहरोॅ नया घोषणा सुनयैं,
भागलोॅ दिल्ली जाय॥

चुनी-चुनी केॅ मंत्री बनबोॅ,
देॅ गरदनियां भगबोॅ।
हे हो बाबू कांटोॅ गरथौं,
बीज-बबूर ने लगबोॅ॥