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खोरना / भाग 2 / भुवनेश्वर सिंह भुवन

जहिया सें बाबूजी ऐलै,
रुकलै सगर विकास।
जेकरोॅ पेट समुन्दर भेलै,
वै मंत्री के सत्यानाश॥

देखी केॅ ऊपर वाला केॅ
निचलां रोजे बदलै रंग।
जेना गाछ के पात देखो केॅ,
गिरगिट बदलै रंग॥

जिनगी भर झिटकी चुननें छै,
आय गिराबै गाज,
वोकरा सें सब कुछ संभव छै,
जेकरा नै छै लाज॥

जै दल के नेता छै बाबू,
वोकरा में सोॅ छेद।
एक मिलाबै तीन भगाबै,
रोज उगै मतभेद॥

कोनो दल कोन्हौं नेता सें,
हिनका नै परहेज।
रवि-प्रकाश में भगजोगनी के,
घटलोॅ जाय छै तेज॥

जात-धरम के नाम,
लड़ाबै वाला हिनकोॅ मीत।
दल-बदलू कुत्ता रं भागै,
जन्हैं देखै जीत॥

सौंसे दुनिया गारी दै छौन,
बेलचां करै बराय।
जे चमचा के बात पेॅ चललै,
धूरा फांकै आय॥

तोहरोॅ चमचा सड़क-लुटेरा,
डाकू चोर अवारा।
जे कुछ निक्कोॅ नजरोॅ आबै,
केॅ दै बारा न्यारा॥

अन्यायी अत्याचारी के,
शासन कब तक चलतै।
कोनो आगिन कत्तो धधकेॅ,
राखे बांकी रहतै॥

अजगर के सिद्धांत-नियन्ता,
फांकेॅ लागलै धूल।
पछताबै दिन-रात,
याद करी केॅ आपनों भूल॥

भीतर के एक्खै धक्कां में,
पाटी भेलै दू फांक।
रोज बनै-टूटै वाला पेॅ,
जमै भरोसा खाक॥

भांगला नावोॅ पेॅ बोलोॅ यात्री,
केना करभेॅ पार।
जल्दी सम्हारोॅ नै तेॅ सबके,
जल समाधि मजधार॥

राज बचाबै के कीमत,
मनमाना मांगै साथी।
जेकरा तोहें गदहा देल्हो,
वं मांगै छौन हाथी॥

जेना खेलौना मनपसन्द लेॅ,
बुतरु कानै हकरै।
ठीक वहीना तोहरोॅ साथी,
मंत्री पद लेॅ डकरै॥

अधिक मुनाफा वाला पद लेॅ,
सबके मुंह में बाढ़।
धूस खोसामद काम नै आबै,
दै धमकी के मार॥

आपना जात के बन्दी पिरियोॅ।
छुट्टा धमै दिन-रात।
रायफल धारी पुलिस साथें,
चलै जेना बारात॥

दिनके प्रकाश में आत्म समर्पण,
भागै सांझ-सकारे।
कानून संगें आंख-मिचौनी,
न्याय केॅ जित्तेॅ गारै॥

अलसैला बिहार के अबेॅ,
खुली रहलोॅ छै आँख।
तोरा हाथ के तोता उड़थौं,
सकोॅ तेॅ पकड़ोॅ पांख॥

हट्ठ-कट्ठा स्वस्थ विधायक,
तोरा लेलीं बीमार।
अस्पताल में मौज उड़ाबै,
करै प्रेम-व्यापार॥

बन्दी के सुविधा के देलकै,
उदाहरण सरकार।
आपना बन्दी वोटर केॅ,
नया वर्ष-नूतन उपहार॥

अट्टट लोरें कानै निस दिन,
वै बन्दी के माय;
जें पीसै छै भारी चक्की,
रुखा-सुखा-सड़लोॅ खाय॥

बड़का भैया कूदी गेलै,
देखथैं भांगलोॅ नाव।
बाढ़ के पानी जेना डुबाबै,
वोन्हैं उबरै गांव॥

बाबू केॅ समझाबै हुनी,
चरित्रवान केॅ बनबोॅ यार।
एखनी जों तोंय चुकल्हेॅ भैया,
खंभेॅ भारी मार॥

जतना जल्दी बनबै बच्चां,
बालू के दीवार।
वोतने जल्दी हवा उड़ाबै,
जस कागज पतबार॥

वाक्-विलास कुछो नै बूझै,
हांकै छुछे डींग।
नै सुगंध ने स्वाद,
फकत बांटै अफगानी हींग॥

यै विवाद के सगर देश पेॅ,
की पड़तै परभाव।
बड़का भाय के साफ घोषणा,
करै उधाड़ोॅ धाव॥

केकरो पत्थर केकरो रोड़ा,
भानुमती के भरै पेटारा।
रोड़ा-पत्थर भागे लागलै,
बचलै जात के नारा॥

तिकड़म सें तोंय नेता बनल्हो,
जात-पात जोड़ी केॅ।
कुछ यारोॅ केॅ मूर्ख बनाय केॅ,
चार दोॅल तोड़ी केॅ॥

राज करै के बुद्धि पैहलोॅ,
लाठी चालन के दोसरोॅ।
सदा दुलत्ती मारै खच्चर।
ज्ञान कहाबै तेसरोॅ॥

सब दुर्गुन के सागर छोॅ तोंय,
राज-योग छोड़ी केॅ।
जेना सुन्दर सब गुण आगर।
सिर्फ नाक घोड़ी के॥

आरक्षण के ज्वार चढ़ी केॅ,
घोंघो बनलै राजा।
परजा फांकै छुछे महंगी,
राजां खाय छै खाजा॥

परजा पेट डंगाबै नाचै,
घोंघा बजबै बाजा॥
आबेॅ ओकरोॅ पूजा हैतै,
चढ़तै ललका धाजा॥

उतरी गेलै ज्वार समुद्र के,
भागेॅ ल गलै यार।
हे हो बाबू एक चना सें,
नै फूटै छै भाड॥

आपनों माँग मनाबै लेॅ,
हड़तालीं करै घेराव।
तोंय गोस्सा सें आगिन उगलोॅ,
खूब देखाबोॅ ताव॥

लीडर के लीडरै भुतलाबोॅ,
औकात बताबोॅ ओकारा।
मुखमंत्री आास में जेना,
मछरी पकड़ै कौकरा॥

नौकर केॅ तोंय खूब सिखाबोॅ,
नौकरिया व्यवहार,
सौंसे दुनियां जानै तोरा।
नौकर के सरदार॥

दुधमूहां बुतरू केॅ पटकै,
औरत के अपमान।
अंग्रेज राज के नकल,
बिहारी शासन के पाषाण॥

कुर्की-जब्ती क बदला में,
फैलाबै आतंक।
रोब देखाबै गाली बक्कै,
गोली मारै निस्सक॥

डायर के वंशाज केॅ फेरु,
पढ़बे पड़तै इतिहास।
जें जनता पर जुल्म करै छै,
निश्चित ओकरोॅ नाश॥

बाहर लागै गुलर पाकलोॅ,
भीतर सड़लोॅ पानी।
हाथोॅ में बन्दूक जना,
थर-थर कांपै अभिमानी।

बाबू तोहें खुद जानै छी,
ई कुर्सी हरजाय।
चारो खाना चित यें पटकेॅ,
जहाँ पाप धिधियाय॥

एकरोॅ पौवा पकड़ी केॅ
कानला सें कुछ नै हैथौं।
तोरा पाप के भैसां,
सीधे-सीध नरक लेॅ जैथौं॥

जब बौना नोचै लेॅ चाहै,
पूरन उज्ज्वल चान।
जब उमताहा गीदड छोड़ै,
सदा-सुरक्षित मान॥

जब पंडितगण तुच्छ प्राप्ति लेॅ,
भूलै अभिनव ज्ञान।
उड़तें-उड़तें जब पतग,
नापेॅ चाहै असमान॥

जन-जीवन में धोखा के,
जब गाड़ै कोय निशान।
कान खोलिकेॅ सुनिहोॅ बाबू,
गेलै ओकरोॅ प्रान॥

भय-दोहन के व्यवसाई के,
की चलतै व्यापार।
जखनी भय के रात सिमटतै,
तखनी बंटाढार॥

जे पानी वाला मर्दाना,
नै भूलै अपमान।
कायर-पंगु-नपुंसक अभिमान॥

दुश्मन खेमा के सैनिक पर,
जें राखै ईमान।
ओकरोॅ नाश अवश्यंभावी,
मूरख ऊ कप्तान॥

फूल-फलोॅ सें लदलोॅ डाली।
नबै तेॅ शोभै गाछ।
नियम तेॅ सगरे लागू छै,
एक्के बाबू बाछ॥

पद के गरिमा शीलवान केॅ,
गुरू-गंभीर बनाबै।
मूरख केॅ उछृंखल बनबै,
जें विष-बीज उगाबै॥

संस्कार शिक्षा सें होय छै,
ज्ञानी के संगति सें।
कोय गरेरी ईश्वर बनलै,
आपना सुन्दर मति सें॥

जहां-जहां तोरोॅ ताकत छौं,
कब्जा करल्हो मतदान।
जे कैलकै विरोध जुलुम के,
लेल्हो ओकरोॅ प्राण॥