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खोरना / भाग 4 / भुवनेश्वर सिंह भुवन

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बिना काम के जरै जवानी,
हुनका सुख सरकारी।
जस दुनिया लॅे बैगन बातर,
पुरहित लेॅ तरकारी॥

आरक्षण के प्रबल मित्र केॅ,
केॅ पड़ै हड़ताल
मजबूरी सरकार ने बूझै,
झूठ बजाबै गाल॥

हुनकोॅ मंत्री निपट अनाड़ी,
साथी गोबर-गनेश।
हुनी व्यस्त कुर्सी-रक्षा में,
कौनें देखतै देश॥

जधा सें बेसी अधिकारी,
हुनका राज के शान।
मौका मिलथैं जें निङली जाय,
सौसे हिन्दुस्तान॥

राज करै के नीत पुरातन,
अंगरेजोॅ सें लेल्हेॅ।
एक-दोसरा केॅ लड़बै में,
प्राप्त महारत कैल्हे॥

एक जात के कौवा के,
आगू-पीछू बारात।
खोजी-खोजी पांख उखाड़ै,
जहां हंस के पांत॥

तोरोॅ साथी भस्मासुर रंग,
हाथ उठैनें नाचै।
सत-शिव-सुन्दर के भारत में,
मंत्र प्रलय के बांचै॥

अन्यायी के तबतक चलती,
जब तक लोग सहै छै।
शांत नदी के प्रबल बेग में,
बड़का महल बहै छै॥

वीर-प्रसवनी जनता जब,
रौंदे गुमान के छाती,
इन्द्रासन डगमग-डग डोलै।
कोयल गाय प्रभाती॥

घृणा-ज्वाल में जेकरा भूजै,
बनबै लोहोॅ लाल।
सगर सृष्टि के असली मालिक,
खड़ा निहारै काल॥

दगाबाज हिटलर के वंशज
लम्पट-डाकू-बटमार।
कायर-नीच-नपुंसक जें,
सुतला में करै प्रहार॥

आतंक अराजकता से,
जें जिनगी भर लड़लै।
आपना चेला के हाथें
दुनिया में सब दिन मरलै॥

मानवता-माया कलंक के,
टीका ई अपराधी।
गान्धी के हत्यारा जेना,
धारन कैलकै खाधी॥

बिलखै टूवर-टापर बचपन,
कलपै ममतामय माय।
हकरै में सोस नुकाय॥

गहन उदासी के तनुबा,
तनलोॅ सौंसे बाजार।
दुख-संताप निचोरै जीवन,
छीनै सुख-संसार।

मार कुंडली बैठी गेलै,
सब दिस करिया नाग।
जेना राहू ग्रसित चन्द्रमा,
पर उभरै छै दाग॥

के बालै मानव सें छुवाबै
छै धरती-आकाश।
वोकरा वेद पढ़ाबोॅ बदलोॅ,
वोकरोॅ आन्हरोॅ विश्वास॥

भुखलोॅ काम कराबै खातिर,
छूत-अछूत विधान।
ऊ पंडित राजा के आश्रित,
बिकलोॅ ओकरोॅ ज्ञान॥

हरिजन के जुत्ता पिन्ही केॅ,
लोग चान्द पर टहलै।
मंगल-शुक्र-सूर्य दिस चललै,
कहोॅ की बांकी रहलै॥

हरिजन जोतै खेत,
राहर-धान-गहूम उगाय।
शहर रोॅ गंदा खाद के उपजा,
रोज पुजारी खाय॥

हरिजन पोसै देसी मुर्गी,
अंडा-बच्चा मालिक खाय।
हरिजन दूहै गाय, दूध,
भोला बाबा केॅ चढ़ाय

हरिजन खान्है कुइयां,
पंडित सांझ-बिहान नहाय।
आपन्हैं खान्हला कुइयां पर सें।
भुवन पियासलोॅ जाय॥

बहै खून के नदी प्रांत में,
हृदय-हीन सरकार।
बाड़ा गांव में माफी मांगै,
पटना में फटकार॥

जंे बोलै, आजका हालत में,
हैतै हत्या अनधून।
वोकरा मन में पाप पलै छै,
वें की रोकतै खून॥

पानी वाला मरद! जात-
धरमोॅ सें ऊपर आबोॅ,
जों तनियों टा आगिन बचल्हौन।
खूनी राज जराबोॅ॥

बरन मृत्यु के युद्ध-क्षेत्र में,
उद्भट वीर सपूत करै छै।
देश-राष्ट्र-जनता के हित में,
हसतें-हसतें प्रान तजै छै॥

युग-युगान्त सें हुनकोॅ पूजा,
समुच्चे संसार करै छै।
जहां चलै छै हुनकोॅ चर्चा,
श्रद्धा-भक्ति दीप जरै छै॥

जें निर्दोेष-निहत्था जन के,
सुतला में रेतै गर्दन।
करै पीठ पर वार ऊ पापी।
देश-धरम के दुश्मन॥

कायर-डरपोक-नपुंसक जें,
जुल्मी के राज सहै छै।
मरला कुत्ता के लाश जेना,
कोशी के धार बहै छै॥

वीर-बहादुर यै धरती पर,
फकत एक बेर आबै छै।
तप-बलिदान-त्याग के बदला,
अमर कीर्ति पाबै छै॥

शोषण-दमन-प्रपीड़न सम्मुख
सीधा खड़ा बैरागी छी।
सच कहबोॅ जों छिकै बगावत,
समझोॅ हम्हूं बागी छी॥

जकरा राजोॅ में हुवै बराबर,
हत्या नरसंहार।
आगजनी-अपहरण-लूट के,
चलै खुला व्यापार॥

मोसकिल चलबोॅ-फिरबोॅ,
सुतबोॅ-बैठबोॅ हंसबोॅ-गैबोॅ।
सबसें सस्तोॅ मानव-जीवन,
महाकठिन सच कहबोॅ।

वै राजोॅ में तित्ती लेसोॅ,
भसबोॅ सात समुन्दर पार।
ऐहना राजा केॅ पिल्लू फरतै,
ऊ धरती के भार॥

फकत चुनाव में करै एकता,
सालो भर तकरार।
आबै खनी खूब प्रशंसा,
भागै खन भीतर-मार॥

खूनी-डाकू-अपहर्ता केॅ,
खुल्ला मीत बनाबै।
धरती पर लाठी पटकी केॅ
कायर रोब देखाबै॥

धोखा में नै परिहोॅ देखी,
बढ़रुपिया के बेश।
गद्दी खातिर एक दिन बाबू,
बेची देथौन देश॥

सरकारी फरमान आबेॅ नै,
कोय समदनोॅ गैतै।
केकढ़ौ घर नै तरुवा छनतै,
कहीं पाग नै बनतै॥

पंचोभोॅ के आम्र-कुंज में,
कोय नै झूला झुलतै।
सौराठोॅ में सभा नै लगतै,
लोग कुमारे रहतै॥

मुखमंत्री के कुर्सी छेकी,
खाली आल्हा गैतै।
कवि-कोकिल के कविता लेसी,
बाबू चाय बनैतै॥

गौरव-गरिमा-मरजादा,
श्री चरण-कमल के जुत्ता।
गलती पकरैला पर हरदम,
नेंगरी हिलबै कुत्ता॥

नोचल्हो फूल गुलाब,
लगाबै छोॅ तोंय कुकुरमुत्ता।
जें अजगुत के बीया बुनतै,
फल पैतै अजगुत्ता॥

दूध-मूहों अबोध बालक तक,
होयछै रोज निपत्ता।
नगर-गाँव घूमै मछलोकबा,
जान बचैहें पुत्ता।

दवा के बदला रंगलोॅ पानी,
तड़पै मरै बीमार।
मरल्हौ पर जेबी टकटोरै,
हत्यारा बटमार॥

भाषण दै छै, चोरी रोकतै,
रोकतै भ्रष्टाचार।
दोन्हौं हाथें मंत्री लूटै,
कोय नै देखनहार॥

शोभै दोसरा माथा पर,
बिना जोॅड़ बिन पत्ता।
नया कली नव किसलय के,
रस-पायी अमरलत्ता॥

बुद्धिमान माफी मांगी केॅ,
तुरत सुधारै चूक,
मूरख-जिद्दी कभू नै चेतै।
यद्यपि चाटै थूक॥

चतुर मीत के चाल पेॅ उनटै,
चारो खाना चित्त।
दसो दिशा सें घेरै तखनी
कफ, बाय आरू पित्त।

नै भविष्य के चिन्ता जकरा,
नै वर्तमान के आस।
बिन लंगर के नाव पेॅ यात्री,
नै करिहोॅ विश्वास।

जुट्ठा रोटी के टुकड़ा पर,
कुत्ता करै लड़ाय।
वोकढ़ै रंग नेता लड़ै,
चमचा झाल बजाय॥

दोसरा केॅ बेपर्द कर में,
सुख पाबै हरजाय।
जें कैलकै विश्वास लंठ पेॅ,
सिर धूनै पछताय॥

भीतर सड़लोॅ जन-द्रोही,
बाहर नित गाल बजाय।
गीदड़ ओढ़ै खाल बाघ के,
निश्चय मारलोॅ जाय॥