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खोलेगी ज़िंदगी कभी जब उम्र की बही / डी. एम. मिश्र

खोलेगी ज़िंदगी कभी जब उम्र की बही
फिर-फिर लहक उठेंगें मेरे चार दिन यही।

सब कुछ बदल गया समय के साथ-साथ पर
इक याद ही तेरी है जो दिल से लगी रही।

सुनता तो दिल ये खूब है, कहता ही कुछ नहीं
खुशियाँ तो मिली ही नहीं , आँसू ही अब सही।

सावन की तरह जिसके लिए मैं भरा रहा
अफ़सोस उम्र भर की प्यास दे गया वही।

मैं डूबने गया था बचाने में जुट गया
लड़की कोई नदी में थी पहले से बह रही।