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खोल तो रहे मुक्ति का द्वार, / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
खोल तो रहे मुक्ति का द्वार,
पर ताली देनेवाली ने क्या पाया उपहार!
पिता, पुत्र, पत्नी, भ्राता के
प्रेम-चित्र तो अद्भुत आँके
सुन न सके क्यों, कवि! रत्ना के
मन की करुण पुकार?
जग को कर रसमय, बडभागी
आप बन गये क्यों वैरागी?
गुरु थी जो, तप-हित क्यों त्यागी
प्राणप्रिया सुकुमार?
राम-भक्त का व्रत जो साधा
पत्नी कब उसमें थी बाधा!
छूट गयी क्यों फिर से राधा
रोती यमुना पार!
खोल तो रहे मुक्ति का द्वार,
पर ताली देनेवाली ने क्या पाया उपहार!