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खो गया था राहबर मेरे बग़ैर / रविंदर कुमार सोनी

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खो गया था राहबर मेरे बग़ैर
किस को थी इतनी ख़बर मेरे बग़ैर

कुश्ता ए ज़ुल्मत था मैं ही दहर में
क्यूँ हुई या रब सहर मेरे बग़ैर

मेरे होते थे यही बर्ग ओ शजर
हैं वही शम्स ओ क़मर मेरे बग़ैर

अब कहाँ वो लुत्फ़ ए तूलानी ए शब
दास्ताँ है मुख़्तसर मेरे बग़ैर

तेरा नाला, बुलबुल ए शोरीदा सर
किस तरह करता असर मेरे बग़ैर

जो रहा करता था मेरे साथ साथ
फिर रहा है दर बदर मेरे बग़ैर

वीराँ वीराँ गलियाँ, उजड़े उजड़े घर
सूने सूने हैं नगर मेरे बग़ैर

साज़ हैं टूटे हुए, नग़मे उदास
चुप हैं अब दीवार ओ दर मेरे बग़ैर

रहरवान ए वक़्त से पूछ ऐ रवि
जा रहे हैं अब किधर मेरे बग़ैर