मायूस इलाक़ों से
उजड़ी हुई बस्तियों से
ढहाये गये मकानों से
बेचैन खंडहरों से
आज भी
झुलसाये गये
मासूमों की
दर्दनाक चीखें गूँजती हैं
जम जाते हैं, पाँव
कँपकँपाती हैं, धड़कने
वह
खौफनाक मंज़र
आँखों से होकर
जब-जब गुज़रता है।
मायूस इलाक़ों से
उजड़ी हुई बस्तियों से
ढहाये गये मकानों से
बेचैन खंडहरों से
आज भी
झुलसाये गये
मासूमों की
दर्दनाक चीखें गूँजती हैं
जम जाते हैं, पाँव
कँपकँपाती हैं, धड़कने
वह
खौफनाक मंज़र
आँखों से होकर
जब-जब गुज़रता है।