भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खौफ़ से सहमी हुई है खून से लथपथ पड़ी / सतपाल 'ख़याल'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
खौफ़ से सहमी हुई है ख़ून से लथपथ पड़ी
अब कोई मरहम करो घायल पड़ी है ज़िंदगी।

पुर्ज़ा-पुर्ज़ा उड़ गए कुछ लोग कल बारुद से
आज आई है ख़बर कि अब बढ़ी है चौकसी।

किस से अब उम्मीद रक्खें हम हिफ़ाज़त की यहाँ
खेत की ही बाड़ सारा खेत देखो खा गई ।

यूँ तो हर मुद्दे पे संसद में बहस ख़ासी हुई
हल नहीं निकला फ़कत हालात पर चर्चा हुई।

कौन अपना दोस्त है और कौन है दुश्मन यहाँ
बस ये उलझन थी जो सारी ज़िंदगी उलझी रही।

लूटकर अपना ही घर ख़ुश हो रहें हैं वो ख़याल
आग घर के ही चराग़ों से है इस घर में लगी।