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ख्याल / मोहन आलोक

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यह जो हम
दिन ब दिन
नीचे से नीचे की ओर
जा रहे हैं
इससे स्पष्ट है
कि कहीं ऊंचाई से आ रहे हैं ।
ये ऊंचाई
जो कि उजालों की ऊंचाई है ;
दरसल
हमारे ख्यालों की ऊंचाई है ।
और ये ख्याल
हमारे कवियों
साहित्यकारों के
खून पसीने की कमाई है ।


अनुवाद : नीरज दइया