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ख्वाब आँखों में चुभो कर देखूं / मोहसिन नक़वी
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ख्वाब आँखों में चुभो कर देखूं
काश मैं भी कभी सो कर देखूं
शायद उभरे तेरी तस्वीर कहीं
मैं तेरी याद में रो कर देखूं
इसी ख्वाहिश में मिटा जाता हूँ
तेरे पांव, तेरी ठोकर देखूं
अश्क हैं, वहम की शबनम, के लहू ??
अपनी पलकें तो भिगो कर देखूं
केसा लगता है बिछड़ कर मिलना ?
मैं अचानक तुझे खो कर देखूं
अब कहाँ अपने गिरेबान की बहार ?
तार में ज़ख्म पिरो कर देखूं
मेरे होने से न होना बेहतर
तू जो चाहे, तेरा हो कर देखूं ?
रूह की गर्द से पहले मोहसिन
दाग़-ए-दमन को तो धो कर देखूं