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ख्वाब आँखों में फिर एक जगने लगा / विष्णु सक्सेना
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					ख्वाब आँखों में फिर एक जगने लगा। 
आसमा चाँद तारों से सजने लगा। 
प्यार से जब से तुमने निहारा हमें, 
घर तुम्हारा हमारा-सा लगने लगा। 
जब से मुझको लगा तू समन्दर-सा है
मेरी आँखों से दरिया-सा बहने लगा। 
तेरी प्यारी-सी रहमत की इस धूप में
मेरा गम धीरे-धीरे पिघलने लगा। 
है ज़माना वही वक्त भी है वही, 
तू न बदला मगर मैं बदलने लगा।
 
	
	

