भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख्वाहिशों को किताब कर देते / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
ख्वाहिशों को किताब कर देते
कुछ तो हम भी जनाब कर देते
मेरी तन्हाइयों को छूकर तुम
जिंदगी को गुलाब कर देते
रात बीती कहाँ नहीं पूछा
वर्ना सारा हिसाब कर देते
तू जो घूँघट जरा पलट देता
हम तुझे लाजवाब कर देते
रास्ते अजनबी हुए सारे
दूर सर से हिजाब कर देते
जुगनुओं ने है चाँदनी चुग ली
आरजू को ही ख्वाब कर देते
छू जो लेते मेरे अहसासों को
राज़ सब बेनक़ाब कर देते
जिंदगी के हर एक लम्हे का
तेरी खातिर हिसाब कर देते
प्यार की शम्मा जो होती रौशन
हम उसे आफ़ताब कर देते