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गँगा आरिओ पारिओ, बरुआ पुकारै हे / अंगिका लोकगीत

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

नदी के उस पार से ‘बरुआ’ अपने पिता से नाव भेजने को कहता है। नाविक और नाव के अभाव में पिता तैरकर ही आने का आदेश देता है। लड़के के यह कहने पर कि मेरे कपड़े और चंदन भीग जायेंगे, पिता आश्वासन देता है कि मैं इन चीजों को पूरा कर दूँगा।

तैरकर आने का तात्पर्य जीवन-रूपी नदी में तैरकर सकुशल पार उतरने और अपने पैरों पर खड़ा होने से है।

गँगा आरिओ<ref>किनारे पर से; उस पार से</ref> पारिओ, बरुआ पुकारै हे।
भेजु कवन बाबा नाव, बरुआ चढ़ि आयत हे॥1॥
नै<ref>नहीं</ref> मोरा नाव नवेरिया<ref>केवट</ref>, नै करुआरियो<ref>करुआर; पतवार का काम देने वाला एक प्रकार का डाँड़, चप्पू</ref> हे।
जिनका जनेउआ के काज, गँगा हेलि<ref>जल में, प्रवेश करकेद्ध तैरकर</ref> आबत हे॥2॥
भींजतै काछ कछौटा, पदुम<ref>कमल का रंग</ref> रँगल चादर हे।
भींजतै हिरदै मुख चन्नन, ओहि जनेउआ लाए हे॥3॥
हमें देबो काछ कछौटा, पदुम रँग चादर हे।
हमें देबो हिरदै मुख चन्नन, पौरि<ref>तैरकर</ref> चलऽ आबहु हे॥4॥

शब्दार्थ
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