गंगटोक की एक सुबह / जय छांछा
कंचनजंघा
लजाते हुए
मुस्कुरा रही है
सूर्य की सुनहरी किरणों का स्पर्श पाकर
एक सुंदर महल की दीवार पर
चिपका हुए अमूर्त कला जैसे शहर की
एक सुबह
सुंदर सुबह
गंगकोट की एक सुबह ।
रानी पुल के नीचे बहती रानी नदी
काकाकुल जैसे ही नीचे झाँकता गणेश टोक
बीच के एम०जी०एम० मार्ग की चहलपहल में
चुपचाप खुद को सम्मिलित करते हुए
चाय की चुस्कियाँ लेते
बिताई हुई सुबह
बहुत ही आनंदित सुबह
गंगटोक की एक सुबह ।
डेवलपमेंट एरिया और
लालबाज़ार में उतरती पदचाप
किसी समूह द्वारा तालियाँ बजाने जैसा गुंजन
कानों में
समूह से निकली हुई कर्णप्रिय आवाज़
संगीत के मधुर तरंग जैसा ही सुनाई पड़ता है एक सुर
मानो चंद्रमा अपना उजाला अभी उठा भी न पाया हो
यहाँ से
और उतर आई है सुबह एकाएक
क्यों, कविता लिखने की ज़रूरत है मुझे?
कविता से सुंदर है यहाँ की सुबह
अर्थात्
हिमालयी राज्य सिक्किम की यह सुबह
गंगटोक की एक सुबह ।
मूल नेपाली से अनुवाद : अर्जुन निराला