भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गंगा और हम / एस. मनोज
Kavita Kosh से
गंगा में बहती जल धारा
तन में बहते रक्त के समान है
जब भी कभी
गंगा की अविरलता को रोका जाता है
मैं टटोलने लगता हूँ अपनी धमनियाँ
गंगा में जमा होता अवसाद
धमनियों में कोलेस्ट्रॉल
जमा होने जैसा महसूसता हूँ
गंगा जल से कोल्ड ड्रिंक बनाना या
बोतल बंद गंगा जल का उद्योग लगाना
शरीर से होने वाले रक्तस्राव
जैसा महसूसता हूँ
ऊर्जा उत्पादन के लिए
गंगा में डाला गया अवरोध
हार्ट में ब्लॉकेज ऐसा लगता है
गंगा की अविरलता
घटने से घुटने लगता है दम
गंगा की अविरलता
भंग होने से क्या बच पाएँगे हम।