गंगा की पुकार / शीला तिवारी
एक सुर में राग ये छिड़ने दे
मुझको मलिन मत होने दे
बहने दे, बहने दे मुझे
अविरल-अविरल बहने दे
मैं गंगा....।
बाँध-पे-बाँध बना डाला
अवरुद्ध हुई मेरी धारा
धीरे-धीरे सिमट रही
कुंठित प्रदूषित तड़प रही
मेरे नीर को मलिन मत होने दे
स्वछन्द पवन संग लहर-लहर गति करने दे
बहने दे, बहने दे,अविरल-अविरल बहने दे
मैं गंगा ....।
जलचर जीवन खो रहे
मेरे तट जल बिना रो रहे
दूषित नीर को झेलती
ऐ मनुष्य! पापों को तेरी धोऊँ क्या
अभिशप्त सी हो रही
मुझको मलिन मत होने दे
उच्चश्रृंखलता से पर्वत नदी से लहर-लहर गति करने दे
बहने दे, बहने दे, अविरल-अविरल बहने दे
मैं गंगा ....।।
धरती पर स्वर्ग मैं लायी हूँ
अलौकिक रूप दिखाती हूँ
दीपों से मुझे पूँजे तू
ऐ मनुष्य ! फिर मेरी पीड़ा न बूझे तू
मानव हित में सदा सोची
हाहाकार रही, चित्कार रही
मुझको मलिन मत होने दे
ले प्रण! मुझे निर्मल-निर्मल बहने दे
एक सुर में राग ये छिड़ने दे
मुझको मलिन मत होने दे
बहने दे, बहने दे, अविरल-अविरल बहने दे
मैं गंगा...।