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गंगा जे बहि बहलै जमुनियां हे सखि सुन्दर कोबर / मैथिली लोकगीत
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मैथिली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
गंगा जे बहि बहलै जमुनियां हे सखि सुन्दर कोबर
बीच मे बहै छथि सरजुग धार हे सखि सुन्दर कोबर
ताहि पैसि अपन सासु पलंगा ओछओलनि हे सखि सुन्दर कोबर
खोइंछा भरि-भरि फुल छिड़िआएल हे सखि सुन्दर कोबर
ताहि पैसि सुतलनि दुलहा से रामचन्द्र संग लागि सीया सुकुमारि हे
घुरि सुतू फिरि सुतू राजा जी के बेटिया अहूँ देह गरमी अपार हे
एतबा वचन जब सुनलथि से फलाँ सुहबे कोबरसँ भऽगेली बहार हे
जुनि रूसू जुनि बहराउ कनियाँ हे सुहबे मानि लीअऽ वचन हमार हे