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गंगा / सुप्रिया सिंह 'वीणा'

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सौसे सृष्टि रोॅ करुणा, ममता,
चरम दिव्य छै भागीरथी।
तोरे धारा सें पाललोॅ-पोसलोॅ,
घर-अंगना उजियारा छै।
हे आनंद-ओज रोॅ देवी गंगा माय,
तोंय शांति-शक्ति रोॅ देवी,
नारी ममता के कल्याण रूप ,
तोरे तप सें ई धरती तप रोॅ भूमि होलै।
बाधा-विघ्न, उपद्रव जंे करतै !
निज करनी फल वें चखतै।
आय भोगी भी रहलो छै उ दुक्खोॅ केॅ,
तहियों नै सम्हरेॅ छै, मानव मूरख छै।
हे मैया, कहिया तोंय ऐकरोॅ दर्प दलन करभोॅ,
हे शिवा ! हे ममतामयी
धरती रोॅ वरदान हे मैया
अमृत घट धारोॅ ,धरती केॅ संवारोॅ,
कहिया बनतै
संपूर्ण जगत ई प्रेम रूप,
सुख, समृद्धि, हास-विलास सें छै फुरसत कहाँ
ई धरती के लोगोॅ केॅ
सच में छै केकरोह अवकाश कहाँ
छै विवाद में पड़लोॅ सत्ता ।
हे मधुरमयी हे स्नेहमयी।
तोरा में कल कारखाना सब मानव सुख के गंदगी
फैलाबै के इतिहास
याद करतै धरती।
जौं नै चेततै ई धरती के लोग
तेॅ सच्चे में सब मटियामेट होय जैतै।