गंगा / 11 / संजय तिवारी
तुम्हारे लिए आयी
बन कर भगीरथ की परछाई
जगत में तुमको लाना था
इसीलिए मुझको भी आना था
विधि ने लिखा
वही तो जगत को दिखा
विश्वामित्र से जो भी सुना
वही सत्य है
इसीलिए मेरा अस्तित्व
अमर्त्य है
उमा से बड़ी हूँ
शिव की जटाओ में खड़ी हूँ
पाकर दीक्षा
करती रही तुम्हारी प्रतीक्षा
तुम्हारे कुल की खातिर आयी
मुक्ति की परछाई
सगर की कथा
असमंजस को लेकर राजा की व्यथा
अंशुमान की पाताल यात्रा
भगवान् कपिल का शाप
गरुण का आलाप
दिलीप और भगीरथ
इक्ष्वाकुवंश के तीरथ
उन्ही के हो अस्तित्व
उसी कुल का प्रभुत्व
अब तक जो भी मरे
सब के सब तरे
तुम अहल्या से होकर आ रहे हो
अब मुझे यहाँ पा रहे हो
सती स्पर्श से अकुला रहे हो
आत्म को रुला रहे हो
सब जानती हूँ
तुम्हें स्वनिर्मल मानती हूँ
क्लांत पीड़ा यही रहने दो
मुझमे बहने दो।
हे राम,
तुम्हारे लिए बहुत गली हूँ
पाताल तक चली हूँ
अभी तक चल रही हूँ
उसी रूप में गल रही हूँ
ढल रही हूँ
जल रही हूँ
फिर भी अटल रही हूँ।