भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गंदगी धेाने में थोड़ा हाथ मैला हो गया / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
गंदगी धेाने में थोड़ा हाथ मैला हो गया
पर, मेरा पानी से रिश्ता और गहरा हो गया।
ये अँधेरा ही न होता तो बताओ फिर मुझे
क्या पता चलता कि जीवन में सवेरा हो गया।
दो मुलाक़ातें हुईं उससे मगर अब देखिये
अजनवी जो कल तलक था यार मेरा हो गया।
इन परिंदों के लिए क्या आम, महुआ, नीम क्या
मिल गया जो पेड़ उस पर ही बसेरा हो गया।
वो किसी की पीर या दुख-दर्द आखिर क्या सुने
कान वाला होके जो इन्सान बहरा हो गया।