गउवो भै खरबूजा / सन्नी गुप्ता 'मदन'
याद आय भउजी कै यक दिन
हमहू फोन लगाए।
अपने भउजी से कहि के हम
कॉल बैक करवाये।
भउजी लगी सुनावै आपन
हमहू लगे सुनावै।
जइसे की झुरान मसुढी का
बैलेस केहू दवावै।
हाल चाल हम पूछै लागे
लड़के-बड़के घरि कै।
हरदी मिर्चा नोन सलाई
अउर मसाला मरि कै।
गोरु बछरू खेत मेड़ कै
कुल कै हालत जाने।
भउजी से कुछ बात जानि कै
मनही मन शरमाने।
बहुत दिना से घरे न आया
काहे देवर राजा।
तनी वीडियो कॉल लगावा
याद होय फिर ताजा।
भइया दीदी ठीक ठाक है।
दादा हये दलानिम।
परेशान मत फोनेक होइहा
भइया बदले है सिम।
अउर सुनावा तनकी भउजी
गाँव देश बा कइसे।
निपटा बाय मुकदमा की फिर
चलत बाय ऊ वइसे।
जवन लहशिया मिली रही है
गुर्जर के फरवारे।
पता चला की के-के मिलकै
गंगुक बिटियक मारे।
देवर जी का नाम बताई
बड़के बाबुक जाना।
मंगरु के बंटवारा होइ गै
अलग बनत बा खाना।
नल कै पनियो भी झुराय गै
हाल बाय अलबेला।
देखा अब तो राम भरोसे
गउवो के बा खेला।
पहिले जइसन हाल नाय बा
बन्द बाय हरि पूजा।
शहरेक बदलत रंग देख कै
गौवों भै खरबूजा।।