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गए मौसम सरीका आज अपना प्यार लगता है / शेष धर तिवारी
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गए मौसम सरीका आज अपना प्यार लगता है
पड़ोसी की वसीयत सा मेरा घर बार लगता है
कहाँ से लायें हम जज्बों में वो रूहानियत कल की
कि अपने में हमें कोई छुपा अय्यार लगता है
जिसे देखो उसी की आँख रोई सी लगे हर दम
कमाना और खाना भी कोई व्यापार लगता है
हमारी बेहिसी से दम घुटा जाता है कुदरत का
न जाने क्या हुआ सूरज हमें बीमार लगता है
सचाई को बयाँ करने का दम ख़म है बचा किसमे
हमें नारद की बीना का भी ढीला तार लगता है