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गगन के चपल तुरग को साध / सुमित्रानंदन पंत
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गगन के चपल तुरग को साध
कसी जब विधि ने ज़ीन लगाम,
ज्वलित तारों की लड़ियाँ बाँध
गले में डाली रास ललाम!
उसी दिन मानव के हित, प्राण,
रचा स्रष्टा ने चिर अज्ञान,
अहर्निश कर मदिराधर पान,
उसे मिल सके मोक्ष, कल्याण!