भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गगन गगन है गान तुम्हारा, / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गगन गगन है गान तुम्हारा,
घन घन जीवनयान तुम्हारा।

नयन नयन खोले हैं यौवन,
यौवन यौवन बांधे सुनयन,
तन तन मन साधे मन मन तन,
मानव मानव मान तुम्हारा।

क्षिति को जल, जल को सित उत्पल,
उत्पल को रवि, ज्योतिर्मण्डल,
रवि को नील गगनतल पुष्कल,
विद्यमान है दान तुम्हारा।

बालों को क्रीड़ाप्रवाल हैं,
युवकों को तनु, कुसुम-माल हैं,
वृद्धों को तप, आलबाल हैं,
छुटा-मिला जप ध्यान तुम्हारा।