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गगन घनघोर गूँजै कोय संभालोॅ / अनिल कुमार झा
Kavita Kosh से
पवन संग पावस के खेल निरालोॅ
गगन घनघोर गूंजै कोय संभालोॅ।
जंगल-जंगल मोर मगन छै
पपीहा केॅ ते पी के लगन छै
जिनगी के जान पिया एना नै निकालोॅ
गगन घन घोर गूँजै कोय संभालोॅ।
छोड़ी केॅ हमरा जे गेल्हेॅ
परदेशी तोहें जे भेल्हे,
बिजुरी चमकी जाय आँख चुँधियैलोॅ
गगन घनघोर गूंजै कोय संभालोॅ।
केना के कहोॅ हम्में रहियै
केकरा जाय जाय दुख कहियै,
देखै नै पारौ, नै देखलोॅ, नै भाललोॅ
गगन घनघोर गूँजै कोय संभालोॅ।