भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गगन तक मार करना आ गया है / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
गगन तक मार करना आ गया है,
समय पर वार करना आ गया है ।
उन्हें कविता में बौनी वेदना को,
कुतुब-मीनार करना आ गया है !
धुएँ की स्याह चादर चीरते ही,
घुटन को पार करना आ गया है ।
अनैतिक व्यक्ति के अन्याय का अब,
हमें प्रतिकार करना आ गया है ।
खुले बाजार में विष बेचने को,
कपट व्यवहार करना आ गया है ।
हम अब जितने भी सपने देखते हैं,
उन्हें साकार करना आ गया है ।
शिला छूते ही, नारी बन गई जो,
उसे अभिसार करना आ गया है