गजबे सुरता आवय गांधी / ध्रुव कुमार वर्मा
सुरुज देवता बनके तेहा,
घर-घर करे अंजोर।
गजबे सुरता आवत रइथे
हमला गांधी तोर।
हमर गरीबी देखके तोरे
आँखी मां आंसू आइस।
तोर दया ला पाके हमर
सुक्खा मन हरियाइस।
बनके जोगी हमरे खातिर,
घर दुवार ला त्यागे।
तैहा अलख जगाए गांधी
सूते भारत जागे।
चक्र सुदर्शन धारी देवय
गीता के उपदेश।
तइसे तोरे चरखा घूमय
देश अऊर परदेश।
गाँव गाँव मां बगराए ते
कर्मयोग के शीर॥1॥
हमरे सही कपड़ा पहिरे,
हमरे सही रहे।
धाम पियास ला अऊ सुख दुख
ला हमरे सही सहे।
सबला जाने एक बरोबर
सबला करे दुलार।
ईसा बनके पापी मन के
तै करे उद्धार।
धरम करम के भेद भाव ला
ते हमर छोड़वाए।
सतनामी अऊ मेंहर मन बर
मंदिर ला खोलवाए।
तोर दया के आगू हिंसा
हा होगे कमजोर॥2॥
सत ला तैहा ईश्वर जाने
जिनगी भर नई छोड़े।
अपन आत्मा ला ककरो ते
बंधन मां नई मोड़े।
भीतर बाहिर दूनों मा तै
एक्के सही रहच।
हित पिरुती अऊ बैरी बर
एक्के बोली कहच।
तोर ऊंचाई बाढ़िस, जतके
तैहा नीचे निहरे।
बन गेये ते राजा गांधी
पटका भर ला पहिरे।
मनखे ले ते देवता होए
अपन चाल के जोर॥3॥