भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गजब दिन भईगे राजा तोर संग मा / छत्तीसगढ़ी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

चक्कर मा घोड़ा, नई छोड़व मैं जोड़ा
झुलाहूँ तोला वो, हाय झुलाहूँ तोला वो
नदिया मा डोंगा, नई छोड़व मैं जोड़ा
तौराहूँ तोला वो, हाय तौराहूँ तोला वो
गजब दिन भईगे राजा तोर संग मा, नई देखेंव खल्लारी मेला वो~
गजब दिन भईगे राजा तोर संग मा, नई देखेंव खल्लारी मेला वो~

चक्कर मा घोड़ा, नई छोड़व मैं जोड़ा
झुलाहूँ तोला वो, हाय झुलाहूँ तोला वो
नदिया मा डोंगा, नई छोड़व मैं जोड़ा
तौराहूँ तोला वो, हाय तौराहूँ तोला वो
गजब दिन भईगे राजा तोर संग मा, नई देखेंव खल्लारी मेला वो~
गजब दिन भईगे राजा तोर संग मा, नई देखेंव खल्लारी मेला वो~

संगी जउहरिय नई छोड़ही तोर संग गोरी वो~
गोरी वो, गोरी वो, गोरी वो
संगी जउहरिय नई छोड़ही तोर संग, में बन जाहूं चकरी, तैं उड़बे पतंग
चटभइंया बोली तोर निक लागे वो, तोर बोली-ठोली हा गुरतुर लागे वो
गजब दिन भईगे राजा तोर संग मा, नई देखेंव खल्लारी मेला वो~
गजब दिन भईगे राजा तोर संग मा, नई देखेंव खल्लारी मेला वो~

तरिया के पानी लागे है बनी गोरी वो~
गोरी वो, गोरी वो, गोरी वो
तरिया के पानी लागे है बानी, दुरिहा घुजके भरबे, कर छेड़कानी
बेलबेल्हा टुरा घटौन्दा के तीर, बइठे बजावत रइथे सिटी
गजब दिन भईगे राजा तोर संग मा, नई देखेंव खल्लारी मेला वो~
गजब दिन भईगे राजा तोर संग मा, नई देखेंव खल्लारी मेला वो~