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गजरा बेचने वाली स्त्री / निर्मला पुतुल
Kavita Kosh से
गजरा बेचने वाली स्त्री
गजरा बेच रही है
वह खुद बदसूरत है
लेकिन दूसरे को सुन्दर बनाने के लिए
सुन्दरता बेच रही है।
गजरा बेचने वाली स्त्री का दिल कोमल है
लेकिन पैर में बिवाइयां फटी हैं
उसने गजरे में पिरो रखे हैं अरमान
उसके अरमान
जो फूलों में गजरे की तरह पिरोए हैं
वह खुद गजरा नहीं लगाती
लेकिन दूसरे को गजरा लगाने की
विशेषताएं बताती हैं
अजीब विडंबना है कि
सुन्दरता बेचने वाली इस असुन्दर स्त्री के
सपनों में आती हैं
कई-कई गजरे वाली स्त्रियां
और इसका उपहास करती हुईं
गुम हो जाती हैं आकाश में
तब गजरों में पिरोए फूल कांटे की तरह
चुभते हैं उसके सीने में!