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गजर / अज्ञेय

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 गजर
बजता है
और स्वर की समकेन्द्र लहरियाँ
फैल जाती हैं
काल के अछोर क्षितिजों तक।
तुम :
जिस पर मेरी टकराहट :
इस वर्तमान की अनुभूति से
फैलाता हुआ हमारे भाग का वृत्त
अतीत और भविष्यत्
काल के अछोर क्षितिजों तक।

बर्कले (कैलिफ़ोर्निया), 31 अक्टूबर, 1969