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गजल मामूली है लेकिन लिहेबा सच्चाई / बजरंग बिहारी 'बजरू'
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गजल मामूली है लेकिन लिहेबा सच्चाई
बिथा<ref>व्यथा, पीड़ा</ref> किसान कै खोली कि लाई गहराई।
इस्क से उपजै इसारा चढ़ै मानी कै परत
बिना जाने कसस बोली दरद से मुस्काई।
तसव्वुर दुनिया रचै औ’ तसव्वुफ अर्थ भरै
न यहके तीर हम डोली न यहका लुकुवाई<ref>छिपाना</ref>।
धरम अध्यात्म से न काम बने जानित है
ककहरा राजनीति कै, पढ़ी औ’ समझाई।
समय बदले समाज बोध का बदल डारे
बिलाये वक्ती गजल ई कहैम न सरमाई।
चुए ओरौनी जौन बरसे सब देखाए परे
‘बजरू’ कै सच न छुपे दबै कहाँ असनाई।
शब्दार्थ
<references/>