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गजल / शिव प्रसाद लोहानी
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सूरज जब खुदे अंधेरा फइलावे लगत
अदना बेचारी भगजोगनी तब की करत
नगाड़ा के चाप से नींद जब नय टूटल
अइसन मे घड़ी के जगउनी तब की करत
ताप के रोके ला छाता कुछ नइ कइलक
अइसन में छाता के कमिनी तब की करत
बुरा विचार के काँटा भरल जंगल जहां
हुआ खाली खुरपी के निकौनी तब की करत
मारकाट अपहरण डकैती जहां हो रहल
हुआ पर कबीर के रमैनी तब की करत
विधि के नायक के रातल नई टोल सकल
हुआ पर सोनार के परिआनी तब की करत
किसिम किसिम के हथियार जहां ढेर हके
हथियार बिना खाली जवानी तब की करत
जनहित के जमके उपेक्षा जे घोर कइलक
पहुंचला पर ओकरा अगवानी तब की करत
पाँच सितारा के पाटी मे खइलक जे हे
उनखा के गाँव के सतुआनी की करत