भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गज़ल हो गये / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'
Kavita Kosh से
आप इतने सफल हो गये ।
मानसर के कमल हो गये ।
था सुधाघट पिलाया गया,
किनतु निर्झर गरल हो गये ।
प्रश्न पैदा हुए बाद में-
पूर्व उत्पन्न हल हो गये ।
झुग्गियाँ कपकपाने लगीं,
आप इतने सबल हो गये ।
चाँदनी में निकल क्या गये,
प्राण मन सबल हो गये ।
आज अपने मिले स्वप्न में,
प्राण कितने विकल हो गये ।
आइना मूक-दर्शन बना,
देख कर दृग सजल हो गये ।
कल कहाँ पड़ रही आजकल,
आजकल आजकल हो गये ।
स्वर हुए कंगनों के मुखर,
भाव मेरे गजल हो गये ।