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गढ़ छोड़ रुकमण बाहर आई / हरियाणवी
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हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
गढ़ छोड़ रुकमण बाहर आई
चौरी तो छाई म्हारे साजना
क्यूंकर आऊं म्हारे राज बन्दड़े
आगै मेरा लाखी दादा आ डट्या
तेरे दादा कै मेरी दादी बिवादूं
चौरी नै राखां जगमगी
क्यूंकर आऊ मेरे राजा बन्दड़े
आगै मेरा लाखी ताऊ आ डट्या
तेरे ताऊ कै मेरी ताई बिवादूं
चौरी ने राखां जगमगी