भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गणनायक स्तुति / कुंदन अमिताभ

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमरऽ प्रणाम स्वीकार करऽ हे गणनायक
हमरऽ प्रणाम स्वीकार करऽ।
हे गणपति, गजानन, विनायक
वक्रतुंड, लम्बोदर, गजवक्र
एकदंत, कृष्णपिंगाक्ष, भालचंद्र
धुम्रवर्ण, विकट, विघ्नराजेन्द्र।
हे ओंकारस्वरूप श्रीगणेश
देवगण केरऽ स्वामी
ब्रह्मत्व विश्वकर्ता
सृष्टि केरऽ पालनहार
अविनाशी आत्मस्वरूप।
हे चैतन्यरूप गजानन
सच्चिदानंदस्वरूप आनन्दमय
ब्रह्म ज्ञानमय विज्ञानमय
पंचमहातत्यमय
संसार केरऽ ओर आरो छोर
परा, पश्यंती, मध्यमा, बैखरी
वाणी केरऽ चारो रूप।

हे त्रिगणौ सें गणी प्रभु
त्रिवस्थौ सें बड़ऽ प्रभु
त्रिकालौ सें बढ़लऽ प्रभु
अग्निदेव, वायुदेव चंद्रदेव
सूर्यदेव, त्रिशक्तिस्वरूप
शाश्वत अविनाशी ब्रह्म
पृथ्वी, अंतरिक्ष, स्वर्ग ओंकारस्वरूप।
हे गणपति हमरऽ रक्षा करऽ
चारो दिशा के परकोपऽ सें रक्षा करऽ
इ धरा के सब विनाशऽ सें रक्षा करऽ
हमरा वरदान दं
हम्में कानऽ सें भल्लऽ सुनौं
आँखी सें भल्लऽ देखौं
हाथऽ सें भल्लऽ करौं
जीहऽ सें भल्लऽ बोलौं
हमरा चलतें नै भंग हुअं
संसार केरऽ अमन चैन आरो शांति।
हमरऽ प्रणाम स्वीकार करऽ हे गणनायक
हमरऽ प्रणाम स्वीकार करऽ।