गणपति,
मैं हर बार त्योहार के नाम पर
तुम्हें ला सकूं या नहीं
तुम रहोगे हमेशा ... हमारे साथ ।
तुम्हें लाना
कभी मात्र मूर्ति का निमंत्रण नहीं था,
बल्कि उस क्षण का पुनर्स्मरण था
जब तुम्हारा मस्तक
कर्तव्य के आगे कट गया !
उस वक्त की मां पार्वती की पीड़ा
मेरे भीतर की स्त्री ने भी महसूस किया।
आदिशक्ति की वह विकलता
मेरी रगों में भी फूटी।
जब तुम्हें नया चेहरा मिला,
तब जीवन ने
एक नया दृष्टिकोण पाया।
तुम्हारा वह रूप
काटे गए अस्तित्व का नहीं,
ज्ञान का उद्घोष बन गया।
तुम पूजन विधि में पहले आए या बाद में
इस भुलभुलैये से अलग
सर्वश्रेष्ठ तुम ही रहे
क्योंकि तुमने विघ्न को विनम्रता से जीता ।
तुमसे
सिर्फ़ मांगने का रिश्ता नहीं है,
तुमसे वो रिश्ता है
जहां विघ्न से जीतने के लिए
कमज़ोर भी ताकतवर होता है विश्वास से
मोदक और लड्डू ही रास्ता दिखाते हैं ।