गणित / श्रीप्रसाद
मत करो गणित की बात, कठिन है भाई
मत समझो इसको रबड़ी और मलाई
चर जायँ खेत दिनभर में यदि दस गाएँ
तो हम कैसे कापी में उन्हें चराएँ
कोई मकान मजदूर बनाएँ जैसे
तो कापी में हम उसे बनाएँ जैसे
यह गणित खोलता बुद्धि, ठीक है माना
पर बुद्धि मंद मेरी है, कैसे जाना
मैं पढ़ता हूँ कविता, गाता हूँ गाना
अच्छा लगता नाटक करके दिखलाना
कोई चाहे तो उसको नाच दिखाऊँ
पेड़ों पर चढ़कर टप-टप आम गिराऊँ
बगिया में पक्षी जब गाना गाते हैं
पक्षी मेरे मन में वे बस जाते हैं
कोयल का स्वर तो है बस सबको प्यारा
गा उठता बाग आम का जैसे सारा
नदियों में उठती लहरें, झरने आते
चट्टानों पर शीशे-सी चमक दिखाते
अमरूद, बेर या मटर, पपीता, केला
अच्छे लगते, मैं खाता नहीं अकेला
अच्छे लगते कपड़े पर गणित, बचाओ
या गणित सरल-सा कोई मुझे सिखाओ
या इसे सिखाओ ऐसे, मैं भी जानूँ
जिससे मैं इसको नहीं कठिन फिर मानूँ
पर अभी कठिन लगता है मुझको भारी
मैं देख चुका हूँ बुद्धि लगाकर सारी
होता यदि कठिन नहीं, कहता क्यों ऐसे
लोहे के हैं ये चने, चबाऊँ कैसे।